तलाक इन इस्लाम Talaq in Islam in Hindi Full Details

तलाक इन इस्लाम Talaq in Islam in Hindi मुस्लिम पुरुष तलाक कैसे ले talaq e biddat in hindi मुस्लिम तलाक के प्रकार Talaq in Muslim law Talaq ka Masla in Quran

तलाक इन इस्लाम | Talaq in Islam

इस्लाम में तलाक़ का हक़ सिर्फ़ मर्द को हासिल है अलबत्ता औरत को खुलअ का हक हासिल है। (खुलअ का मतलब है कि औरत अपने मर्द के साथ वक़्त गुज़ारना न चाहती हो और तलाक़ लेना चाहती हो, तो मर्द को कुछ रक़म वग़ैरह देकर तलाक़ देने पर राजी कर ले और वह कुछ लेकर तलाक़ दे दे । मर्द को तीन तलाक़ देने का हक़ है।

मुस्लिम विधि में तलाक कितने प्रकार के होते हैं | Talaq Ka Masla in Quran

इस्लाम में यानी मुस्लिम विधि से तलाक़ तीन क़िस्म की हैं जो निम्नवत है:-

  • रजई
  • बाइन
  • मुग़ल्ला

रजई तलाक | Talak Raj’i Adalah in Hindi

रजई तलाक़—यह है कि आदमी अपनी बीवी को तलाक़ दे। अभी इद्दत नहीं गुजरी थी कि उसने रुजू कर लिया। इसी तरह वह दो बार कर सकता है। अगर वह तीसरी बार तलाक़ देगा, तो फिर रुजू न कर सकेगा।

बाइन तलाक | Talaq e Bain ki Iddat

बाइन तलाक़ – यह है कि आदमी तलाक़ देते वक़्त ऐसे सख्त शब्द इस्तेमाल करे जिससे निकाह में फ़साद पैदा हो जाए, जैसे, यों कहे कि मैंने तुझे बहुत सख्त तलाक़ दी या गन्दी तलाक़ दी या शदीद तलाक़ दी या बहुत लम्बी तलाक़ दी या बहुत चौड़ी तलाक़ दी वग़ैरह तो इस तरह एक तलाक़ देगा, तब भी निकाह टूट जाएगा, और बग़ैर निकाह पढ़ाए रुजू जायज़ न होगा।

तलाक़े मुग़ल्लज़ा | Talaq e Mughallazah in Hindi | Talaq in Islam

तलाक़े मुग़ल्लज़ा – यह है कि आदमी अपनी बीवी को तीन तलाक़ दे। तीन तलाक़ की शक्ल में रुजूअ और दूसरा निकाह जायज नहीं, अलबत्ता इस शक्ल में वह औरत पहले शौहर के निकाह में दोबारा आ सकती है। जबकि वह औरत दूसरी जगह निकाह कर ले।

वह शौहर मियां-बीवी वाले ताल्लुक़ात क़ायम करने के बाद किसी वक़्त उसे तलाक़ दे दे या फ़ौत हो जाए तो इद्दत गुजार कर पहले शौहर के साथ चाहे तो निकाह कर सकती है।

रुजू करने के लिए इद्दत के अन्दर जुबान से कहना ज़रूरी नहीं कि मैंने रुजूअ किया, बल्कि औरत से मर्द व औरत के ताल्लुक़ात क़ायम कर लेने से अपने आप रुजू हो जाएगा। तीन तलाक़ एक वक़्त में देना गुनाह है, अगर ये तलाक़ हो जाती हैं।

इद्दत का तरीका | Iddat ka Tarika in Hindi | Talaq in Islam in Hindi

  • तलाक़शुदा औरत अगर ऐसी है, जिसे हैज़ आता है, तो उसकी इद्दत तीन हैज़ है।
  • अगर औरत ऐसी है जिसे हैज़ नहीं आता तो उसकी तो उसकी इद्दत चांद के हिसाब से तीन माह है
  • अगर औरत हामिला (गर्भवती) है तो उसकी इद्दत बच्चा जनने तक है।
  • सम्भोग से से पहले अगर किसी औरत को तलाक़ दी गई तो उसकी कोई इद्दत नहीं।
  • तलाक़ के तुरन्त बाद उसका निकाह किया जा सकता है।
  • ऐसी औरत को मह्र का आधा हक़ मिलेगा।
  • इद्दत के दिनों में औरत को बनाव- सिंगार से परहेज़ करना चाहिए, जबकि वह बाइना और मुग़ल्लज्जा तलाक़ हासिल कर चुकी है।
  • रजई तलाक़ वाली को बनाव-सिंगार करना चाहिए, मुम्किन है उसका शौहर रुजूअ करे।

हक़ मेहर की रकम इन इस्लाम

Haq Mehar ki Raqam in Islam: निकाह के लिए मह ज़रूरी शर्त है। बग़ैर मह मुक़र्रर किए निकाह जायज़ है, लेकिन मह इस हालत में मह मिल होगा। यानी उस औरत के ख़ानदान का रिवाजी मह वाजिब होगा ।

  • मेहर की ज़्यादा से ज़्यादा कोई हद नहीं है
  • और कम से कम हनफ़ियों के नज़दीक दस दिरहम (लगभग चालीस रुपए) है।
  • मेहर ताक़त के मुताबिक़ मुक़र्रर करना चाहिए, जिस पर दोनों फ़रीक़ राज़ी हो जाएं।
  • इस मह्र को निकाह के वक़्त और निकाह के बाद भी दिया जा सकता है।
  • निकाह के बाद औरत का और औलाद का खर्चा ताक़त के मुताबिक़ मर्द के जिम्मे होगा।
  • मैहर में औरत अपनी मर्जी से कम व बेश कर सकती है और चाहे तो सारा मह माफ़ भी कर सकती है।
  • मह्र में मंकूला (वह जायदाद वह है जो एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जा सके ।) और ग़ैर-मंकूला जायदाद दी जा सकती है। मेहर फ़ौरी तौर पर औरत ‘के हवाले करने की कोशिश करनी चाहिए ।
  • मह्र में सिर्फ़ औरत को खर्च करने का अधिकार है, क्योंकि उसकी वह अकेली मालिकिन है।
  • मह की अदाएगी में हेरा-फेरी बहुत बड़ा गुनाह है।