हजरत उमर फारूक का वाकया Hazrat Umar Farooq ka Waqia in Hindi | hazrat umar farooq history in hindi pdf | हजरत उमर का किस्सा
Hazrat Umar Farooq
खलीफ-ए-दोम जानशीने पैग़म्बर हज़रत उमर फारूके ॐ की कुन्नियत “अबू हफ्स” और लक्च” फारूके अजम” अजम है। आप कुरैश के सरदारों में जाती व खानदानी मर्तबा के लिहाज से बहुत ही मुमताज़ हैं। आठवें पुश्त में आप का खानदानी शजरा रसूलुल्लाह के राजर-ए-नसब से मिलता है।
आप वाकिआ फील के तीन साल बाद मक्का मुकर्रमा में पैदा हुए और ऐलाने नबूवत के छठे साल सत्ताइस (27) साल की उम्र में मुशर्रफ वा इस्लाम हुए।। जब कि एक रिवायत में है कि आप से पहले कुल उन्तालीस (39) आदमी इस्लाम कबूल कर चुके थे।
आप के मुसलमान हो जाने से मुसलमानों को बेहद खुशी हुई और उन को एक बहुत बड़ा सहारा मिल गया। यहाँ तक कि हुजूर रहमते आलम ने मुसलमानों की जमाअत के साथ खाना-ए-कअबा की मस्जिद में खुल्लम खुल्ला नमाज़ अदा फरमाई। आप तमाम इस्लामी जंगों में मुजाहिदाना शान के साथ कुफ्फार से लड़ते रहे और पैग़म्बरे इस्लाम की तमाम इस्लामी कामों और सुलह व जंग वगेरह की तमाम मनसूबा बन्दियों में हुजूर सुलताने मदीना के वज़ीर व मुशीर की हैसियत से वफादार साथी रहे।
अमीरूल मुमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक ने अपने बाद आप को खलीफा चुना और दस साल छः महीना चार दिन आप ने तख्ते खिलाफत पर रौनक अफरोज़ होकर जानशीनी रसूल की तमाम ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह अन्जाम दिया। 26 ज़िलहिज्जा 23 हिजरी बुध के दिन नमाज़े फज़ में अबू लूलू फीरोज़ मजूसी काफिर ने आप के पेट में खन्जर मारा और आप यह ज़खम खा कर तीसरे दिन शर्फ शहादत से सरफराज़ हो गए।
बवक्ते वफात आप की उम्र शरीफ तिरसठ (63) साल की थी। हज़रत सुहेब ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और रोज़ए मुबारका के अन्दर हज़रत सिद्दीके अकबर के में पहलूए अनवर में मदफून हुए।
(तारीखुल खुलफा व अज़ालतुल स्निफा वगैरह )
हजरत उमर फारूक का वाकया
एक वाकया हजरत उमर फारूक का “कब्र वालो से बातचीत” को आगे लिख रहे आइये पढ़े Hazrat Umar Farooq ka Waqia in Hindi
कब्र वालो से बातचीत | Hazrat Umar Farooq ka Waqia in Hindi
अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर फारूक एक मर्तबा एक नेक नौजवान की कब्र पर तशरीफ ले गए और फ़रमाया कि ऐ फुलाँ ! अल्लाह तआला ने वअदा फरमाया कि lils (यअनी जो शख्स अपने रब के हुजूर खड़े होने से डर गया । उस के लिए दो जन्नतें हैं) ऐ नौजवान ! बता तेरा कब्र में क्या हाल है? उस नौजवान सालिह (नेक) ने कब्र के अन्दर से आप ने का नाम ले कर पुकारा और बआवाज़े बलन्द दो मर्तबा जवाब दिया कि मेरे रब ने यह दोनों जन्नतें मुझे अता फरमा दी हैं।
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दरिया के नाम खतः रिवायत है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रते उमर फारूक के दौरे खिलाफत में एक मर्तबा मिस्र का दरियाए नील सूख गया। मिस्र के रहने वालों ने मिस्र के गवर्नर अम्र बिन से फरियाद की और यह कहा कि मिस्र की तमाम तर पैदावार का दारो मदार उसी दरियाए नील के पानी पर है।
ऐ अमीर! अब तक हमारा यह दस्तूर रहा है कि जब कभी भी यह दरया सूख जाता था तो हम लोग एक खूबसूरत कंवारी लड़की को इस दरिया में ज़िन्दा दफन करके दरिया की भेंट चढ़ाया करते थे तो यह दरिया जारी हो जाया करता था अब हम क्या करें?
गवर्नर ने जवाब दिया कि अरहमुरार्हिमीन और रहमतुल लिलआलमीन का रहमत भरा दीन हमारा इस्लाम हरगिज़ हरगिज़ कभी भी इस बे रहमी और ज़ालिमाना काम की इजाज़त नहीं दे सकता इस लिए तुम लोग इन्तज़ार करो में दरबारे ख़िलाफ़त में ख़त लिख कर पूछता हूँ।
वहाँ से जो हुक्म मिलेगा हम उस पर अमल करेंगे। चुनान्चे एक कासिद गवर्नर का ख़त लेकर मदीना मुनव्वरा दरबारे खिलाफत में हाज़िर हुआ। अमीरूल मोमिनीन ने गवर्नर का ख़त पढ़ कर दरियाए नील के नाम एक खत तहरीर फ़रमाया जिस का मजमून यह था कि
“ऐ दरियाए नील! अगर तू खुद बखुद जारी हुआ करता था तो हम को तेरी कोई ज़रूरत नहीं है और अगर तू अल्लाह तआला के हुक्म से जारी होता था तो फिर अल्लाह तआला के हुक्म हो जा।”
अमीरूल मोमिनीन ने इस ख़त को कासिद के हवाला फ़रमाया हुक्म दिया कि मेरे इस ख़त को दरियाए नील में दफन कर दिया जाए। चुनान्वे आप के फ़रमान के मुताबिक गवर्नर मिस्र ने उस ख़त को दरियाए नील के सूखे बालू में दफ़न कर दिया। ख़ुदा की शान कि जैसे ही अमीरूल मोमिनीन का ख़त दरिया में दफन किया गया। फौरन ही दरिया जारी हो गया
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