हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह Hazrat Abu Ubaidah Bin Jarrah Hindi Full

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हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह

हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह: यह खानदाने कुरैश के बहुत ही नामवर और मुअज्ज़ज़ शख्स हैं। फहर बिन मालिक पर उन का खानदानी राजरा रसूलुल्लाह खानदान से मिल जाता है। यह भी अशरए मुबरशेरा में से हैं। उन का असली नाम ” आमिर” है।

अबू उबैदा उन की कुन्नियत है और उन को बारगाहे रिसालत में अमीनुल उम्मत का लकब मिला है शुरू इस्लाम ही में हज़रत अबू बकर सिद्दीक ने उन के सामने इस्लाम पेश किया तो आप फौरन ही इस्लाम कबूल करके जाँ निसारों के लिए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो गए। पहले आप ने हबशा हिजरत की।

फिर हबशा से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए। जंगे बद्र आदि तमाम इस्लामी जंगों में इन्तहाई जाँबाज़ी के साथ कुफ़्फ़ार से मअरका आराई करते रहे। जंगे उहुद में दो कड़ियाँ हुजुरे अनवर के रूखसार (गाल) में चुभ गई थी। आप ने अपने दाँतों से पकड़ कर लोहे की उन कड़यों को खींच कर निकाला।

उसी में आप के अगले दो दाँत शहीद हो गए थे। बहुत ही शेरे दिल बहादुर, बलन्द कामत और बारोब चेहरे | वाले पहलवान थे। 18 हिजरी में बमुकामे उरदुन ताऊन अमवास में वफात पा गए

हज़रत मआज बिन जबल ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। और मकामे बीसान में दफ़न हुए। बवक्ते वफात उम्र शरीफ़ उठावन बरस थी।

अकमाल फि असमाइरिजाल स 608) इमाम आज़म

Hazrat Abu Ubaidah Bin Jarrah

Hazrat Abu Ubaidah Bin Jarrah: आप की करामतों में से एक बहुत ही मशहूर और अजीब करामत निम्नलिखित है।

बेमिसाल मछली की कहानी: आप तीन सौ मुजाहिदीने इस्लाम के लश्कर के | कमान्डर बन कर “सैफुल बहर” में जिहाद के लिए तशरीफ ले गए। वहाँ फौज का राशन ख़त्म हो गया। यहाँ तक कि यह चौबीस चौबीस घंटे में एक एक खजूर बतौरे राशन के मुजाहिदीन को देने लगे।

फिर वह खजूरें भी ख़तम हो गई। अब भूके रहने के सिवा कोई चारा नहीं था। उस मौके पर आप की यह करामत ज़ाहिर हुई कि अचानक समन्द्र की तूफानी मौजों ने किनारे पर एक बहुत बड़ी मच्छली को फेंक दिया उस मच्छली को यह तीन सौ मुजाहिदीन की फौज अट्ठारा दिनों तक पेट भर कर खाते रहे और उस की चरबी को अपने जिसमों पर मलती रही।

यहाँ तक कि सब लोग तन्दुरूस्त और खूब मोटे ताज़े हो गए फिर चलते वक्त उस मच्छली का कुछ हिस्सा काट कर अपने साथ ले कर मदीना मुनव्वरा वापस आए और हुजूरे अकदस की खिदमते अकदस में भी इस मच्छली का एक टुकड़ा पेश किया जिस को आप ने खाया और इरशाद फ़रमाया कि उस मच्छली को अल्लाह तआला ने तुम्हारा रिज़्क बना कर भेज दिया।

यह मच्छली कितनी बड़ी थी लोगों को उस का अन्दाज़ा बताने के लिए अमीरे लश्कर हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह ने हुक्म दिया कि | उस मच्छली की दो पिस्लियों को ज़मीन में गाड़दें।

चुनान्चे दोनों | पिस्लियाँ ज़मीन में गाड़ दी गई तो इतनी बड़ी मेहराब बन गई कि उस के नीचे कजावा बंधा हुआ ऊँट गुज़र गया।

बुखारी शरीफ जि 2, स 626, बाब ग़ज़वर सैफुल बहर