ज़कात निकलने का तरीका Zakat Nikalne Ka Tarika: इस्लाम में जकात को बहुत ही अहमियत दी जाती है लेकिन बहुत से लोग ज़कात निकलने का तरीका क्या है कि जानकारी चाहते है ऐसे में आइये जाने ज़कात क्या है और जकात से सम्बंधित सवाल के जवाब
जकात का मतलब जाने
ज़कात का मतलब है पाकी और सफाई। अपने माल में से एक हिस्सा जरूरतमन्दों और ग़रीबों के लिए निकालने को जकात इसलिए कहा गया है कि इस तरह आदमी का माल और उस माल के साथ खुद आदमी का सुप्रस और मन भी पाक हो जाता है। जो शख़्स ख़ुदा की दी हुई दौलत में से ख़ुदा के बन्दों का हक़ नहीं निकालता, उसका माल नापाक है और माल के साथ उसका नफ़्स भी नापाक है, क्योंकि उसके नफ़्स में एहसान फरामोशी भरी हुई है।
उसका दिल इतना तंग है, इतना खुदगरज – है, इतना ज़रपरस्त (माल का पुजारी) है कि जिस ख़ुदा ने उसको उसकी असली ज़रूरतों से ज्यादा दौलत देकर उसपर एहसान किया, उसके एहसान का हक़ अदा करते हुए भी उसका दिल दुखता है।
ऐसे शख़्स से क्या उम्मीद की जा सकती है कि वह दुनिया में कोई नेकी भी ख़ुदा के वास्ते कर सकेगा, कोई क़ुरबानी भी सिर्फ अपने दीन व ईमान के लिए बरदाश्त कर सकेगा? इसलिए ऐसे आदमी का दिल भी नापाक और उसका वह माल भी नापाक, जिसे वह इस तरह जमा करे। ~ सोर्स
जकात कुरान की रौशनी में
Zakat Quran ki roshni mein: तमाम नबियों की उम्मत पर ज़कात फ़र्ज़ की गई कुरआन मजीद उठाकर देखिए।
आपको नज़र आएगा कि पुराने जमाने से सारे नबियों की उम्मतों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म लाज़मी तौर पर दिया गया है, और दीन इस्लाम कभी किसी नबी के जमाने में भी इन दो चीजों से खाली नहीं रहा। हज़रत इबराहीम (अलै0) और उनकी नस्ल के नबियों का ज़िक्र करने के बाद अल्लाह फ़रमाता है—
وَجَعَلْنَهُمْ أَئِمَّةً يَّهْدُونَ بِأَمْرِنَا وَاَوْحَيْنَا إِلَيْهِمْ فِعْلَ الْخَيْرَاتِ وَإِقَامَ الصَّلوةِ وَايْتَاءَ الزَّكُوةِ وَكَانُوا لَنَا عَابِدِينَ
- हमने उनको इनसानों का पेशवा बनाया और वे हमारे हुक्म के मुताबिक लोगों की रहनुमाई करते थे।
- हमने वह्य के ज़रिए से उनको नेक काम करने, नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की तालीम दी
- और वे हमारे इबादतगुजार बन्दे थे ~कुरान 21:73
हज़रत इसमाईल (अलै०) के बारे में कहा गया-
وَكَانَ يَأْمُرُ أَهْلَهُ بالصَّلوةِ وَالزَّكوةِ وَكَانَ عِنْدَ رَبِّهِ مَرْضِيَّان
- वे अपने लोगों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देते थे
- और वे अपने रब के नज़दीक पसन्दीदा थे। ~ कुरआन, 19:55
हज़रत मूसा (अलै०) ने अपनी क़ौम के लिए दुआ की कि ख़ुदाया ! हमें इस दुनिया की भलाई भी दे और आखिरत की भलाई भी। आपको मालूम है कि इसके जवाब में अल्लाह तआला ने क्या फ़रमाया ? जवाब में कहा गया-
عَذَابِي أُصِيبُ بِهِ مَنْ أَشَاءُ وَرَحْمَتِي وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ فَسَأَكْتُبُهَا لِلَّذِينَ يَتَّقُونَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَوٰةَ وَالَّذِينَ هُمْ بِآيَتِنَا يُؤْمِنُونَ
- मैं अपने अज़ाब में जिसे चाहूँगा घेर लूँगा, हालाँकि मेरी रहमत हर चीज़ पर छाई हुई है।
- मगर उस रहमत को मैं उन्हीं लोगों के हक़ में लिखूँगा जो मुझसे डरेंगे और ज़कात देंगे
- और हमारी आयतों पर ईमान लाएँगे। ~ कुरआन, 7:156
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