हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह Hazrat Talha Bin Ubaidullah हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह वाकया hazrat talha bin ubaidullah waqia Story In Hindi सहाबा के किस्से हिंदी में
हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह
आप का नाम नामी भी अशरह मुबरशेरह की फेहरिस्ते गिरामी में है। मक्का मुकर्रमा के अन्दर खानदाने कुरैश में आप की पैदाइश हुई। माँ बाप ने “तलहा” नाम रखा मगर दरबारे नुबुवत से उन को “फुय्याज़” व “जव्वाद” व खैर” के मुअज्ज़ज़ अलकाब अता हुए।
यह जमाअते सहाबा में से पहले ईमान लाने वाले की लाइन में हैं। उन के इस्लाम लाने का वाकिआ यह है कि यह तिजारत के लिए बसरा गए तो वहाँ के एक ईसाई पादरी ने उन से दरयाफ़्त किया कि क्या मक्का में “अहमद नबी” पैदा हो चुके हैं?
उन्होंने हैरान होकर पूछा! कौन “अहमद नबी’? पादरी ने कहा। ” अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब वह नबी आख्रिरूज़्ज़मा हैं और उन की नुबुवत के जहूर का यही ज़माना है। और उन की पहचान का निशान यह है कि वह मक्का मुकर्रमा में पैदा होंगे और खुजूरों वाले शहर (मदीना मुनव्वरा) की तरफ़ हिजरत करेंगे।”
चूँकि उस वक़्त तक हुजूरे अकरम ने अपनी नुबुवत का ऐलान नहीं फ़रमाया था। इस लिए हज़रत तलहाने पादरी को नबी आख्रिरूज़्ज़माँ खातिमुन्नबीईन के बारे में कोई जवाब न दे सके। लेकिन बसरा से मक्का मुअज़्ज़मा आने के बाद जब उन का पता चला कि हुजूरे अकरम ने अपनी नुबुवत का ऐलान फ़रमा दिया है।
तो यह हज़रत अबू बकर सिद्दीक के साथ बारगाहे नुबुवत में हाज़िर होकर मुशर्रफ व इस्लाम हुए।
कुफ्फारे मक्का ने उन को बे हद सताया और रस्सी में बांध कर उन को मारते रहे मगर यह पहाड़ की तरह दीने इस्लाम पर जमे रहे। फिर हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए और जंगे बद्र के सिवा तमाम इस्लामी जंगों में कुफ़्फ़ार से लड़ते रहे।
जंगे बद्र में उन की गैर हाज़िरी का यह सबब हुआ कि हुजूरे अकदस ने उन को और हज़रत सईद बिन जैद को अबू सुफयान के काफिला की तलाश में भेज दिया था।
अबू सुफ़यान का काफिला समंद्र के किनारे के रास्ते से मक्का मुकर्रमा चला गया और यह दोनों हज़रात जब लौट कर मैदाने बद्र में पहुँचे तो जंग ख़त्म हो चुकी थी।
जंगे उहुद में उन्होंने बड़ी ही जाँ बाज़ी और सर फ़रोशी का मुज़ाहिरा किया। हुजूरे अकदस को कुफ्फार के हमलों से बचाने में चूँकि यह तलवार और नेज़ों की बौछाड़ को अपने हाथ पर रोकते रहे। इस लिए आप की उंगली कट गई और हाथ बिल्कुल बेकार हो गया था और उन के बदन पर तीर व तलवार और नेज़ों के पच्हत्तर (75) ज़ख़्म लगे।
उन के फ़जाइल व मनाकिब में चन्द हदीसें भी वारिद हुई हैं। जंगे उद्दुद के दिन जब जंग रूक जाने के बाद हुजूरे अकरम चट्टान पर चढ़ने लगे तो लोहे की ज़िरा के बोझ की वजह से चट्टान पर चढ़ना दुश्वार हो गया।
उस वक्त हज़रत तलहा बैठ गए और उन के बदन के ऊपर से गुज़र कर हुजूरे अकरम चट्टान पर चढ़े और खुश होकर फ़रमाया ! (यअनी तलहा ने अपने लिए जन्नत वाजिब कर ली।) इसी तरह हुजूरे अकरम ने यह भी फ़रमाया ! ज़मीन पर चलता फिरता शहीद “तलहा” है।
(मिश्कात स 566) (कंजुल उम्माल ज़ि 12, स 275, मतबूआ हैदराबाद)
Hazrat Talha Bin Ubaidullah Waqia In Hindi
एक कब्र से दूसरी कब्र में वाकया: शहादत के बाद आप को बसरा के करीब दफन कर दिया गया मगर जिस मकाम पर आप की कब्र शरीफ बनी वह गढ़े में था। इस लिए कब्र मुबारक कभी कभी पानी में डूब जाती थी।
आप ने एक शख्स को बार बार ख्वाब में आकर अपनी कब्र बदलने का हुक्म दिया। चुनान्चे उस शख्स ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से अपना ख़्वाब बयान किया तो आप ने दस हज़ार दिरहम में एक सहाबी का मकान खरीद कर उस में कब्र खोदी और हज़रत तलहा की मुकद्दस लाश को पुरानी कब्र में से निकाल कर उस कब्र में दफ़न कर दिया।
काफी मुद्दत गुज़र जाने के बावजूद आप का मुक़द्दस जिस्म सलामत और बिल्कुल ही तरो ताज़ा था। (किताब अशरए मुबश्शेरा स 245)
तबसेराः गौर फ़रमाइए कि कच्ची कब्र जो पानी में डूबी रहती थी एक मुद्दत गुज़र जाने के बावजूद एक वली और शहीद की लाश ख़राब नहीं हुई।
जो हज़रात अंबिया खास कर हुजूर सैय्यदुल अंबिया के मुक़द्दस जिस्म को कब्र की मिट्टी भला किस तरह ख़राब कर सकती है?
यही वजह है कि हुजूरे अकरम ने इरशाद फ़रमाया
(मिश्कात 121) (यअनी अल्लाह तआला ने अंबिया के जिस्मों को ज़मीन पर हराम फरमा दिया है कि ज़मीन उन को कभी खा नहीं सकती।)
इसी तरह इस रिवायत से इस मस्ला पर भी रोशनी पड़ती है कि शोहदा-ए-किराम अपने जिन्दगी की जरूरतों के साथ अपनी अपनी कब्रों में ज़िन्दा हैं क्यों कि अगर वह ज़िन्दा न होते तो कब्र में पानी भर जाने से उन को क्या तकलीफ होती?
hazrat talha bin ubaidullah waqia Story In Hindi