हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया: जो शख़्स अन्धे (क़ौमी, नस्ली या भाषाई) झंडे तले लड़े और मारा जाए और वो तअस्सुब और क़ौमी तरफ़दारी की तरफ़ बुलाता हो या क़ौमी तअस्सुब की मदद करता हो तो उसकी मौत जाहिलियत की मौत होगी। 📓(सहीह मुस्लिम : 4792)
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रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : ईमान की साठ से कुछ ऊपर शाख़ें हैं। और हया (शर्म) भी ईमान की एक शाख़ है। सही बुखारी 9
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रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : वो बंदा नाकाम और खसारे में रहा जिसके दिल में अल्लाह ने इंसान के लिए रहम नहीं रखा। अस् सिलसिला अस् सहीहा 110
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